अंकशास्त्र एक परिचय   


विज्ञान और अंक शास्त्र में अन्योन्याश्रय सम्बन्ध है। ज्योतिष का ही नहीं यद्यपि संसार का प्रारम्भ ’’अंक’’ से ही हुआ है। जहाँ से काल का प्रारम्भ हुआ वह भी काल का उत्पन्न कारक पिता ’’अंक’’ ही है। इस प्रकार जीवन में अंक का बहुत बड़ा महत्व है। अंक के बिना जब सृष्टि का प्रारम्भ संभव नहीं, तो अंक के बिना कोई भी कार्य का शुभारम्भ भी असंभव होता है। अंक ही वैदिक गणित का सृजन किया और अंक के आधार पर ही ब्रह्म स्वरूप का दर्शन हुआ।

ज्योतिष वेदांग, सृष्टि के उदय से प्रलय काल तक की सभी घटनाओं का आधार स्तम्भ है, ज्योतिष तथा समय का विवरण अंक शास्त्र के अनुसार प्राप्त होता है। इस प्रकार यह स्पष्ट है कि अंक और ज्योतिष में सम्बन्ध है। सांसारिक वस्तुओं को देखने से ऐसा प्रतीत होता है, कि किसी भी वस्तु के अनेकानेक रूप हैं। अलग-अलग रंगों को एक दूसरे के साथ मिला देने से एक तीसरा रंग जैसे रक्त (लाल) और पीत (पीला) रंग मिला देने से एक तीसरा नारंगी रंग बन जाता है। नीला और पीला मिलाने से हरा इस प्रकार हजारों रंग बन सकते हैं, परन्तु वास्तव में ये रंग मात्र सात हैं। सात रंगों का मूल रंग सफेद अर्थात् रंग रहित है जिसे शुद्धप्रकाश कहते हैं। सूर्य प्रकाश पर ये सात रंग दृश्य होते हैं परन्तु सूर्य की किरण शुद्ध उज्ज्वल एवं रंगहीन प्रतीत होती है।

इसी प्रकार सृष्टि की संरचना पंचतत्व-पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश तत्व से हुई है। यह सम्पूर्ण संसार पंच तत्वों का स्वरूप है। इन तत्वों की उत्पत्ति, आकाश से हुई है। सांसारिक पदार्थों का मूलगुण, शब्द है इसी कारण शब्द को ”शब्द ब्रह्म“ अर्थात् ईश्वर का प्रतीक माना गया है और इसे ही परमात्मा कहते हैं। प्रत्येक शब्द को अंक अथवा संख्या में परिवर्तित कर, उसकी माप की जा सकती है। शब्द से मंत्र का निर्माण हुआ है, मंत्र को शक्ति प्रदान करने के लिए एक अनुपातिक गणना कर मंत्र को पूर्ण शक्ति प्राप्त हो जाती है, तब वह मंत्र अपना पूर्ण प्रभाव प्रदान करता है। किसी भी शब्द या मंत्र को निश्चित संख्या में जपने अथवा पढ़ने से वह शक्तिशाली हो जाता है।

सूर्यग्रह का मंत्र 7000 जपने से सूर्य की अनुकूलता प्राप्त होती है। इसी प्रकार चन्द्रमा का 11000, मंगल का दस हजार, बुध का नौ हजार बृहस्पति का उन्नीस हजार शुक्र का सोलह हजार शनि का तेईस हजार, राहु का अठारह हजार एवं केतु के सतरह हजार निर्धारित मंत्र का जाप करने से सूर्यादिग्रह की अनुकूलता होती है। संख्या और शब्द का परिचय हमें ऋषि मुनियों से प्राप्त हुआ है। किसी देवता के मंत्र में 22 अक्षर होते हैं, तो किसी देवता के मंत्र षडक्षरी भी होते हैं।
इसी प्रकार संख्या और क्रिया का घनिष्ठ सम्बन्ध है, अंक की गणना शून्य से की जाती है, ’’शून्य’’ निराकार ब्रह्म का प्रतीक है तथा पूर्ण ब्रह्म का द्योतक है। शून्य का सृष्टि में बड़ा भारी महत्व है, अंक का किसी वस्तु से सम्बन्ध होना यह प्रमाणित करता है कि, ज्योतिष शास्त्र में अंकविद्या का सम्बन्ध अधिक महत्वपूर्ण है।

अंक किसी भी वस्तु और क्रिया सम्बन्ध को प्रमाणित करता है, हमारे शास्त्र में 108 मणियों की माला बनाने का विधान है, तथा इन संख्याओं का अपना अलग-अलग महत्व है। जैसे धन की प्राप्ति हेतु 30 मणियों की माला का प्रयोग किया जाता है, तो सभी प्रकार की सिद्धियों के लिए 27 मणियों की, इसी प्रकार 54 मणियों की माला और 108 मणियों की माला सभी प्रकार की सिद्धियाँ प्रदान करती हैं। अभिचार कर्म के लिए 15 मणियों की माला व्यवहार में लायी जाती है।