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 श्री गणेशाय नम:


गणपति परिवारं चारुकेयूरहारं,
गिरिधरवरसारं योगिनी चक्रचारम्।
भव-भय-परिहारं दु:ख दारिद्रय-दूरं
गणपतिमभिवन्दे वक्रतुण्डावतारम्।।१।।

जो अपने समस्त परिवार के साथ सुशोभित हैं, जिन्होंने केयूर (बाहों के आभूषण) और मोती की माला धारण कर रखी है, जो कृष्ण के समान श्रेष्ठ बल से युक्त, एवं साक्षात् वक्रतुण्ड के अवतार माने जाते हैं, उन सांसारिक भय, दु: दरिद्रता को हरने वाले भगवान् गणपति की मैं, वन्दना करता हूँ।



गजाननाय पूर्णाय सांख्यरूपमयाय ते।
विदेहेन च सर्वत्र संस्थिताय नमो नम:।।

जिनका रूप सांख्यशास्त्र से जानने योग्य है, जो शरीर से अदृश्य होते हुए भी सभी जगह स्थित है, ऐसे पूर्ण परमेश्वर गजानन को, बार-बार नमस्कार है।