वास्तु दोष निवारक यंत्र


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भाद्रपद मास के कृष्णपक्ष की तृतीया तिथि, शनिवार, कृतिका नक्ष्ज्ञत्र, व्यतीपात योग, विष्टि करण, भद्रा के मध्य में कुलिक मूहूर्त में वास्तु की उत्पत्ति हुई उसके भंयकर गर्जना से चकित होकर ब्रह्मा ने कहा जो भी व्यक्ति ग्राम, नगर, दुर्ग, यरही, मकान, प्रसाद, जलाशय, उद्यान के निर्माणारम्भ के समय मोहवश आपकी उपासना नहीं करेगा या आपके यंत्र को स्थापित नहीं करेगा वह पग-पग बांधाओं का सामना करेगा और जीवन पर्यंत अस्त-व्यस्त रहेगा।

मकान चाहे विशाल या साधारण हो दुकान हो या कम्पनी हो धर्मशाला हो या मन्दिर हो यहां तक कि मोटरगाड़ियों में भी वास्तु का निवास होता है। अगर किसी कारण वस स्थान निर्माण में वास्तु दोष उत्पन्न होता है तो वास्तु देवता को प्रसन्न एवं सन्तुष्ट करने के लिए अनेक उपाय किये जाते हैं। जिनमें वास्तु यंत्र सरल एवं अधिक उपयोगी है इस यंत्र को स्थापित करने से वास्तु दोष का निवारण होता है। तथा उस स्थान में सुख समृद्धि का वर्चस्व होता है। इस यंत्र को चल या अचल दोनों प्रकार से प्रतिष्ठित किया जाता है।

प्रत्येक वर्ष यज्ञादि में, पुत्र जन्म पर, यज्ञोपवीत, विवाह, महोत्सवों में, जीर्णोद्धार, धान्य संग्र्रह में, बिजली गिरने से टूटू हुए घर में, अग्नि से जल हुए घर पर, सर्प व चांडाल से घिरे हुए घर पर, उल्लू और कौआ सात दिन तक जिस घर में रहते हैं, जिस घर में रात्रि में मृत वास करें, गौ व मार्जार गर्जना करें, हाथी, घोड़े विशेष शब्द करें और जिसमें स्त्रियों के झगड़े होते हों, जिस घर में कबूतर रहते हों, मधुमक्खियों का छत्ता हो और अनेक प्रकार के उत्पात होते हों वहां वास्तुयंत्र अवश्य स्थापित करें।