ज्योतिष में फलकथन का आधार मुख्यतः ग्रहों, राशियों और भावों का स्वाभाव, कारकत्व एवं उनका आपसी संबध है। ग्रहों
को ज्योतिष में जीव की तरह माना जाता है - राशियों एवं भावों को वह
क्षेत्र मान जाता है, जहाँ ग्रह विचरण करते हैं। ग्रहों का ग्रहों से संबध,
राशियों से संबध, भावों से संबध आदि से फलकथन का निर्धारण होता है। ज्योतिष
में ग्रहों का एक जीव की तरह 'स्वभाव' होता है। इसके अलाव ग्रहों का
'कारकत्व' भी होता है। राशियों का केवल 'स्वभाव' एवं भावों का केवल
'कारकत्व' होता है। स्वभाव और कारकत्व में फर्क समझना बहुत जरूरी है। सरल
शब्दों में 'स्वभाव' 'कैसे' का जबाब देता है और 'कारकत्व' 'क्या' का
जबाब देता है। इसे एक उदाहरण से समझते हैं। माना की सूर्य ग्रह मंगल की मेष
राशि में दशम भाव में स्थित है। ऐसी स्थिति में सूर्य क्या परिणाम देगा? नीचे
भाव के कारकत्व की तालिका दी है, जिससे पता चलता है कि दशम भाव व्यवसाय
एवं व्यापार का कारक है। अत: सूर्य क्या देगा, इसका उत्तर मिला की सूर्य
'व्यवसाय' देगा। वह व्यापार या व्यवसाय कैसा होगा - सूर्य के स्वाभाव
और मेष राशि के स्वाभाव जैसा। सूर्य एक आक्रामक ग्रह है और मंगल की मेष
राशि भी आक्रामक राशि है अत: व्यवसाय आक्रामक हो सकता है। दूसरे शब्दों
में जातक सेना या खेल के व्यवयाय में हो सकता है, जहां आक्रामकता की जरूरत
होती है। इसी तरह ग्रह, राशि, एवं भावों के स्वाभाव एवं कारकत्व को
मिलाकर फलकथन किया जाता है। दुनिया
की समस्त चल एवं अचल वस्तुएं ग्रह, राशि और भाव से निर्धारित होती है।
चूँकि दुनिया की सभी चल एवं अचल वस्तुओं के बारे मैं तो चर्चा नहीं की जा
सकती, इसलिए सिर्फ मुख्य मुख्य कारकत्व के बारे में चर्चा करेंगे। सबसे पहले हम भाव के बारे में जानते हैं। भाव के कारकत्व इस प्रकार हैं - प्रथम भाव : प्रथम भाव से विचारणीय विषय हैं - जन्म, सिर, शरीर, अंग, आयु, रंग-रूप, कद, जाति आदि। द्वितीय भाव: दूसरे भाव से विचारणीय विषय हैं - रुपया पैसा, धन, नेत्र, मुख, वाणी, आर्थिक स्थिति, कुटुंब, भोजन, जिह्य, दांत, मृत्यु, नाक आदि। तृतीय भाव : तृतीय भाव के अंतर्गत आने वाले विषय हैं - स्वयं से छोटे सहोदर, साहस, डर, कान, शक्ति, मानसिक संतुलन आदि। चतुर्थ भाव : इस भाव के अंतर्गत प्रमुख विषय - सुख, विद्या, वाहन, ह्दय, संपत्ति, गृह, माता, संबंधी गण,पशुधन और इमारतें। पंचव भाव : पंचम भाव के विचारणीय विषय हैं - संतान, संतान सुख, बुद्धि कुशाग्रता, प्रशंसा योग्य कार्य, दान, मनोरंजन, जुआ आदि। षष्ठ भाव : इस भाव से विचारणीय विषय हैं - रोग, शारीरिक वक्रता, शत्रु कष्ट, चिंता, चोट, मुकदमेबाजी, मामा, अवसाद आदि। सप्तम भाव : विवाह, पत्नी, यौन सुख, यात्रा, मृत्यु, पार्टनर आदि विचारणीय विषय सप्तम भाव से संबंधित हैं। अष्टम भाव : आयु, दुर्भाग्य, पापकर्म, कर्ज, शत्रुता, अकाल मृत्यु, कठिनाइयां, सन्ताप और पिछले जन्म के कर्मों के मुताबिक सुख व दुख, परलोक गमन आदि विचारणीय विषय आठवें भाव से संबंधित हैं। नवम भाव : इस भाव से विचारणीय विषय हैं - पिता, भाग्य, गुरु, प्रशंसा, योग्य कार्य, धर्म, दानशीलता, पूर्वजन्मों का संचि पुण्य। दशम भाव : दशम भाव से विचारणीय विषय हैं - उदरपालन, व्यवसाय, व्यापार, प्रतिष्ठा, श्रेणी, पद, प्रसिद्धि, अधिकार, प्रभुत्व, पैतृक व्यवसाय। एकादश भाव : इस भाव से विचारणीय विषय हैं - लाभ, ज्येष्ठ भ्राता, मुनाफा, आभूषण, अभिलाषा पूर्ति, धन संपत्ति की प्राप्ति, व्यापार में लाभ आदि। द्वादश भाव : इस भाव से संबंधित विचारणीय विषय हैं - व्यय, यातना, मोक्ष, दरिद्रता, शत्रुता के कार्य, दान, चोरी से हानि, बंधन, चोरों से संबंध, बायीं आंख, शय्यासुख, पैर आदि। इस बार इतना ही। ग्रहों का स्वभाव/ कारकत्व व राशियों के स्वाभाव की चर्चा हम अगले पाठ में करेंगे। |